औरतों को देखना और ताक-झांक करना अब संगीन जुर्म बन गया है।
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उनके कुछ काव्य शिल्पों में ताक-झांक करना हमारे लिए मूल्यवान हो सकता है।
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ताक-झांक करना जिन्हें पसंद है, वे बिना किसी अपराध-बोध के इसका आनंद ले सकें, शायद इसीलिए ऐसे कार्यक्रम रचे जाते हैं.
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मेरे विचार से किसी के निजी जीवन में ताक-झांक करना उचित नहीं है और ज्यादातर लोग इसमें कोई दिलचस्पी भी नहीं रखते हैं.
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समाज के कुछ लोगों का धंधा ही है, दूसरों के जीवन में ताक-झांक करना और नुक्कड़ वाली चाय दूकान पर एक्सपर्ट कमेंट्स देना...
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चिढ़ इसलिए कि मुझे महसूस होता है कि यह प्रवृत्ति किसी अस्वस्थ, वृथा-जिज्ञासु मन की द्योतक है, कि वह दूसरों में सहज विश्वास नहीं कर पाती, इसीलिए ताक-झांक करना आवश्यक समझती है, कि वह इसीलिए चोरी-चोरी दूसरों के निजी पत्र, दूसरों की डायरियां पढ़ जाना आनंदप्रद समझती है।